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 सर्वपितृ अमावस्या पर इस चालीसा का पाठ भी करना चाहिए, जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं।

जिन लोगों को अपने पूर्वजों की अवसान तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है, वे लोग Sarva Pitru Amavasya पर श्राद्ध कर्म व तर्पण कर सकते हैं।

HIGHLIGHTS

  1. हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व होता है।
  2. पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितंबर 2023 से होने वाली है।
  3. इसका समापन 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर होगा।

 हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व होता है। पंडित प्रभु दयाल दीक्षित के मुताबिक, पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितंबर 2023 से होने वाली है और इसका समापन 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर होगा।

पंडित दीक्षित के मुताबिक, जिन लोगों को अपने पूर्वजों की अवसान तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है, वे लोग Sarva Pitru Amavasya पर श्राद्ध कर्म व तर्पण कर सकते हैं। इसके अलावा सर्वपितृ अमावस्या पर इस चालीसा का पाठ भी करना चाहिए, जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं।

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Sarva%20Pitru%20Amavasya September 8, 2023

श्री पितर चालीसा

।।दोहा।।

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद

चरणाशीश नवा दियो रख दो सिर पर हाथ ।

सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी,

हे पितरेश्वर दया राखियो करियो मन की चाया जी ।।

।।चौपाई।।

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर । चरण रज की मुक्ति सागर ।।

परम उपकार पितरेश्वर कीन्हा । मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा ।।

मातृ-पितृ देव मनजो भावे । सोई अमित जीवन फल पावे ।।

जै जै जै पितर जी साईं । पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं ।।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा । संकट में तेरा ही सहारा ।।

नारायण आधार सृष्टि का । पितरजी अंश उसी दृष्टि का ।।

प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते । भाग्य द्वार आप ही खुलवाते ।।

झुंझुनू ने दरबार है साजे । सब देवो संग आप विराजे ।।

प्रसन्न होय मन वांछित फल दीन्हा । कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा ।।

पितर महिमा सबसे न्यारी । जिसका गुण गावे नर नारी ।।

तीन मंड में आप बिराजे । बसु रुद्र आदित्य में साजे ।।

नाथ सकल संपदा तुम्हारी । मैं सेवक समेत सुत नारी ।।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते । शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते ।।

तुम्हारे भजन परम हितकारी । छोटे बड़े सभी अधिकारी ।।

भानु उदय संग आप पुजावै । पांच अंजुलि जल रिझावे ।।

ध्वज पताका मंड पे है साजे । अखंड ज्योति में आप विराजे ।।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी । धन्य हुई जन्म भूमि हमारी ।।

शहीद हमारे यहाँ पुजाते । मातृ भक्ति संदेश सुनाते ।।

जगत पित्तरो सिद्धांत हमारा । धर्म जाति का नहीं है नारा ।।

हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई । सब पूजे पितर भाई ।।

हिंदू वंश वृक्ष है हमारा । जान से ज्यादा हमको प्यारा ।।

गंगा ये मरुप्रदेश की । पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की ।।

बंधु छोड़कर इनके चरणां । इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा ।।

चौदस को जागरण करवाते । अमावस को हम धोक लगाते ।।

जात जडूला सभी मनाते । नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते ।।

धन्य जन्मभूमि का वो फूल है । जिसे पितृ मंडल की मिली धूल है ।।

श्री पितर जी भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।

निशदिन ध्यान धरे जो कोई । ता सम भक्त और नहीं कोई ।।

तुम अनाथ के नाथ सहाई । दीनन के हो तुम सदा सहाई ।।

चारिक वेद प्रभु के साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ।।

नाम तुम्हारो लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहीं कोई ।।

जो तुम्हारे नित पांव पलोटत । नवों सिद्धि चरणा में लोटत ।।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी । जो तुम पे जावे बलिहारी ।।

जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे । ताकी मुक्ति अवसी हो जावे ।।

सत्य भजन तुम्हारो जो गावे । सो निश्चय चारों फल पावे ।।

तुमहिं देव कुलदेव हमारे । तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे ।।

सत्य आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावें कोई ।।

तुम्हारी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहस्त्र मुख सके न गाई ।।

मैं अतिदीन मलीन दुखारी । करहु कौन विधि विनय तुम्हारी ।।

अब पितर जी दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ।।