Treatments of lotus dental clinic birgaon

यज्ञोपवीत हिंदू समाज के 16 संस्कारों में से एक माना जाता है। जनेऊ के तीनों सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं।

Janeu Sanskar: हिंदू धर्म में 16 संस्कारों को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जनेऊ अथवा यज्ञोपवीत संस्कार के बारे में तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस में लिखा है, “भए कुमार जबहिं सब भ्राता, दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता।” इसका अर्थ है कि सभी भाई जब किशोरावस्था को प्राप्त हुए तो गुरु, पिता और माता ने उन्हें जनेऊ धारण करने के लिए दिया।

यज्ञोपवीत हिंदू समाज के 16 संस्कारों में से एक माना जाता है। इस समय सावन का महीना चल रहा है। सावन के महीने को जनेऊ धारण करने या बदलने के लिए उत्तम माना जाता है। जनेऊ से जुड़े कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए।

– जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। इसे संस्कृत में यज्ञोपवीत कहा जाता है। इसे गले में इस तरह पहनते हैं कि बाएं कंधे के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे रहे।

Raipur public school Birgaon ADMISSION OPEN 23-24

– जनेऊ के तीनों सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं। इन्हें सत, रज और तम गुणों के साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रतीक भी माना जाता है।

– यह तीन आश्रमों के साथ ही गायत्री मंत्र के तीन चरणों का भी प्रतीक है। इसके तीन धागों में से प्रत्येक में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह इसमें कुल नौ तार होते हैं। मनुष्य के शरीर में भी नौ द्वार होते हैं – एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के द्वार।

– यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती हैं, जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेंद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक है।

जनेऊ धारण करने के नियम

यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए। हाथ स्वच्छ करने के बाद ही उसे कान से उतारना चाहिए। इस कर्म के पीछे का अर्थ है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न होने पाए।

यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक का समय हो जाए, तो पूर्णिमा के दिन इसे बदल लेना चाहिए। खंडित यज्ञोपवीत को शरीर पर धारण नहीं किया जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि इसके धागे गंदे न होने पाएं, गंदे होने पर भी इसे बदलना चाहिए।

जनेऊ या यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता है, साफ करने के लिए उसे गले में पहने हुए ही घुमाकर धो लिया जाता है। यदि कभी भूल से उतर जाए तो भगवान का स्मरण कर प्रायश्चित करना चाहिए।

जब कोई भी बालक इन नियमों का पालन करने के योग्य हो जाए, तभी उसका यज्ञोपवीत संस्कार करना चाहिए।