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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी ने तेज की तैयारियां ; पहली बार श्रीराम होंगे चुनावी मुद्दा

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छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दल सभा, सम्मेलन के साथ-साथ उम्मीदवार चयन के मैदान में जमकर बल्लेबाजी कर रहे हैं।

HighLights

  • छत्‍तीसगढ़ में बजा विधानसभा चुनाव का बिगुल
  • कांग्रेस को भूपेश सरकार की योजनाओं पर भरोसा
  • भाजपा पीएम मोदी के काम पर आजमा रही जोर

 छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दल सभा, सम्मेलन के साथ-साथ उम्मीदवार चयन के मैदान में जमकर बल्लेबाजी कर रहे हैं। भाजपा जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काम पर जोर आजमा रही है, तो कांग्रेस को भूपेश सरकार की योजनाओं पर भरोसा है। प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव पांच प्रमुख मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता नजर आएगा। राज्य गठन के बाद पहली बार भगवान श्रीराम चुनावी मुद्दा होंगे।

छत्तीसगढ़ के स्थानीय लोगों की संवेदना काे उभारकर राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ियावाद की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। टिकट वितरण से लेकर अन्य मोर्चों पर इसकी झलक साफ नजर आने लगी है। 50 फीसद ओबीसी वोटरों वाले राज्य में आरक्षण एक रणनीतिक चुनावी मुद्दा रहता है। प्रदेश में आरक्षण का पेंच फंसा हुआ है। सरकार और राजभवन पिछले आठ महीने से आमने सामने हैं।

कांग्रेस और भाजपा दोनों एक दूसरे को आरक्षण पर घेर रही हैं। प्रदेश में शराबबंदी के वादों ने कांग्रेस को बड़ी जीत दिलाई। अब फिर चुनाव होने जा रहा है और शराबबंदी पर कोई फैसला नहीं हुआ है। ऐसे में विपक्षी दल सरकार को घेरने के लिए शराबबंदी का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं। भ्रष्टाचार पर विपक्ष के तेवर और सत्ता पक्ष के जवाब के बीच मतदाता अब भी इंतजार कर रहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रायपुर के साइंस कालेज मैदान में सभा के साथ भाजपा का चुनावी बिगुल फूंका तो उसमें सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार निकला। पीएम ने शराब घोटाले, कोयला घोटाले लेकर अन्य घोटालों पर राज्य सरकार को घेरा। भाजपा नेताओं को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को घेरने और संघर्ष करने की सीख दी।

इसके उलट, कांग्रेस इन घोटालों को भाजपा प्रायोजित बताकर हवा निकालने की जुगत में है। कांग्रेस लगातार यह प्रचारित कर रही है कि केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी और आइटी भाजपा के सहयोगी संगठन के रूप में काम कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के इन मुद्दों पर मतदाताओं की अब तक खुलकर राय नहीं आ रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो अगले एक महीने में मतदाता भी मुखर होकर भ्रष्टाचार पर अपनी राय रखेंगे, अभी वह भी पूरी स्थिति को समझने में जुटे हैं।

राम रथ की सवारी, किस पर पड़ेगी भारी

पौने पांच साल पहले जब कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने शपथ ली, उस समय किसी ने नहीं सोचा होगा कि कांग्रेस राम नाम का मुद्दा भाजपा का हाथ से छीन लेगी। अब तक अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर भाजपा का पसंदीदा मुद्दा था। वर्ष 2017 में रायपुर में बने भव्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए थे।

लेकिन अब कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ को भगवान श्रीराम के ननिहाल के रूप में स्थापित किया। श्रीराम वनगमन पथ बनाया गया, जहां नौ प्रमुख स्थानों पर 50 फीट की भगवान श्रीराम की प्रतिमा लगाई गई। रायपुर से 25 किलोमीटर दूर चंदखुरी में माता कौशल्या के प्राचीन मंदिर को भव्य रुप दिया गया। कांग्रेस यह प्रचारित करने से भी नहीं चूकी कि भाजपा की 15 साल की सरकार ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की। इस चुनाव में कांग्रेस जहां भागवान श्रीराम के सहारे नजर आ रही है, तो भाजपा इसका जवाब तलाशती दिख रही है।

छत्तीसगढ़ियावाद की सियासी संजीवनी

प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद छत्तीसगढ़ियावाद का जोर है। कांग्रेस सरकार ने तीज-त्योहार से लेकर हर जगह छत्तीसगढ़ियावाद पर फोकस किया है। हालांकि छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया का नारा कांग्रेस और भाजपा की चुनावी सभाओं में सुनाई दे रहा है। गेड़ी से लेकर बोरे-बासी इस चुनाव में चर्चा का विषय है। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के बीच गेड़ी चैलेंज ने मतदाताओं के बीच एक नया रोमांच पैदा किया है।

हरेली से लेकर रोका छेका तक को कांग्रेस अपने पक्ष में करने के लिए पिछले चार साल से प्रयास कर रही है। सरकार ने हर जिले में छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति लगाने की घोषणा की। इसके बाद प्रदेश में पीएम मोदी की पहली सभा के मुख्य मंच पर छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर नजर आई। अब चुनाव में छत्तीसगढ़िया किसके लिए संजीवनी लेकर आएगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

यह है प्रमुख चुनावी मुद्दा

धान: धान के कटोरों में दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा धान के इर्द-गिर्द अपनी राजनीति को धार देने की कोशिश में है। देश में सबसे ज्यादा दाम पर धान खरीदने वाला राज्य छत्तीसगढ़ है। कांग्रेस इसकी ब्रांडिंग न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि देश के अन्य चुनावी राज्यों में कर रही है। इस बार सरकार ने प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदने की घोषणा की है।

किसान: देश में सबसे बड़ा वोट बैंक किसान है। कांग्रेस सरकार ने न्याय योजना के माध्यम से किसानों और कृषि मजदूरों की जेब में पैसा डालने का काम किया। भाजपा इसका विरोध नहीं करती, लेकिन उनके केंद्रीय नेता इसे मुफ्त की रेवड़ी करार देते हैं।इस चुनाव में न्याय बनाम चुनावी रेवड़ी बड़ा मुद्दा है।

युवा: प्रदेश के करीब 40 प्रतिशत वोटर युवा है। सरकार ने एक लाख से ज्यादा बेरोजगारों को भत्ता देने का अभियान चुनावी साल में शुरू किया। सरकार ने प्रतियोगी परीक्षा की फीस समाप्त की, तो युवाओं के लिए भर्तियों के द्वार भी खोले। अब दोनों दलों ने आधी विधानसभा सीट पर युवा प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है।

विपक्ष का यह है हथियार

केंद्र सरकार की योजनाओं के दम पर विपक्ष ताल ठोंक रहा है। जल जीवन मिशन हो या फिर सड़कों के विकास के लिए केंद्रीय फंड, भाजपा के चुनाव प्रचार में इसकी झलक दिख रही है। राज्य सरकार के काम के बाद भाजपा के पास सिर्फ दो ऐसे मुद्दे हैं, जिसका कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है। पहला शराबबंदी और दूसरा गरीबों का आवास। भाजपा हर सभा में शराबबंदी को मुद्दा बना रही है। पीएम आवास नहीं बनने के नाम पर भाजपा ने विधानसभा का घेराव किया था। इसके बाद सरकार ने आवासहीनों की गणना का काम शुरू किया है।

सरकार के काम से वापसी की उम्मीद

भूपेश सरकार के काम से कांग्रेस को वापसी की उम्मीद है। राज्य सरकार ने गांव, गरीब और मजदूरों के लिए कई योजनाएं लाई। गांव में रीपा के माध्यम से रोजगार के नए अवसर पैदा किया गया। गोठान से सरकार ने जैविक खेती की दिशा में कदम बढ़ाए। कांग्रेस के प्रचार अभियान में बेरोजगारी भत्ता से लेकर पिछले चुनाव में किए वादों को पूरा होने का जिक्र है। कांग्रेस भूपेश सरकार के काम और सीएम भूपेश बघेल के चेहरे के दाम पर ताल ठोंक रही है।

चुनाव से नजर आएंगे नए समीकरण

पिछले विधानसभा चुनाव में प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और बसपा के बीच गठजोड़ से करीब 30 विधानसभा सीट का समीकरण बदलकर रख दिया था। भाजपा की करारी हार के पीछे इस गठजोड़ के उम्मीदवार को मिले वोट को प्रमुख कारक माना जाता है। इस चुनाव में बसपा अकेले चुनाव लड़ने जा रही है, तो आम आदमी पार्टी भी प्रदेश की सभी सीट पर उम्मीदवार उतार रही है।

आदिवासी वोटरों के ध्रुवीकरण को लेकर सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधि पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम के नेतृत्व में नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच रहेगा, लेकिन जकांछ, बसपा, आप और सर्व आदिवासी समाज की पार्टी नए समीकरण बनाएंगी।

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