कालेज के दोस्तों को अच्छा खाना खिलवाने की यह तरकीब से मनोज को एक स्टार्टअप सूझा, जिसे उन्होंने ”माम्स फूड” का नाम दिया। उनके इस स्टार्टटप में बिलासपुर से इंजीनियरिंग करने वाले उनके मित्र विकास गुप्ता भी सहसंस्थापक है।
HighLights
- 33 हजार रुपये से से शुरु हुआ यह स्टार्टअप अब दो करोड़ रुपये वैल्यूशन की कंपनी बन चुका है।
- अब तक करीब 15 हजार से अधिक संतुष्ट ग्राहकों को ”माम्स फूड” ने भोजन परोसा है।
- ‘माम्स फूड’ अब छत्तीसगढ़ के 22 शहर में पहुंच चुकी है। यह एप अब प्लेस्टोर पर भी उपलब्ध हो चुका है।
छत्तीसगढ़ के बस्तर में बारूदी गंध के बीच मां के खाने की सुगंध के विचार से बनी ”माम्स फूड” अब छत्तीसगढ़ के 22 शहर में पहुंच चुकी है। रायपुर, बिलासपुर, मनेंद्रगढ़, भिलाई, बैकुंठपुर, सूरजपुर, रायगढ़, सुकमा, कोंडागांव, सुकमा सहित छत्तीसगढ़ के अन्य शहर में घर के बाहर होने पर यदि घर के खाने की याद आए तो ”माम्स फूड” आपको वहीं स्वाद परोसेगी। यह कंपनी अब दोबारा इसलिए भी चर्चा में है, क्योंकि जगदलपुर में दो दिन पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मिलेट्स कैफे का शुभारंभ किया, जिसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने माम्स फूड को दी।
जगदलपुर के छोटे से घर में 33 हजार रुपये से से शुरु हुआ यह स्टार्टअप अब दो करोड़ रुपये वैल्यूशन की कंपनी बन चुका है। चार वर्ष में 87 लाख रुपये का व्यापार कंपनी ने किया है। इस स्टार्टअप में छत्तीसगढ़ी, बंगाली, गुजराती, राजस्थानी से लेकर अन्य कई तरह के 200 से अधिक शाकाहारी व मांसाहारी व्यंजन ग्राहकों को उनकी पसंद के अनुसार परोसा जाता है।
इसके लिए प्रदेश भर में 475 से अधिक मम्मियां अलग- अलग तरह के स्वादिष्ट व्यंजन घरेलू तड़के के साथ तैयार करती है। अब तक करीब 15 हजार से अधिक संतुष्ट ग्राहकों को ”माम्स फूड” ने भोजन परोसा है, जिसमें पांच हजार से अधिक नियमित ग्राहक हैं। उनका यह एप अब प्लेस्टोर पर भी उपलब्ध हो चुका है।


मनोज साहू (27 वर्ष) बताते हैं कि अंबिकापुर से बस्तर के जगदलपुर स्थित इंजीनियरिंग कालेज में माइनिंग की पढ़ाई करने आए तो उन्हें सबसे अधिक दिक्कत घर जैसा खाना नहीं मिलने की हो रही थी। उन्हीं की तरह साथी छात्रों की भी यहीं परेशानी थी। उस वक्त पढ़ाई से अधिक प्राथमिकता अच्छा खाना ढूंढने की थी।
ऐसे में जिस मकान में किराएदार थे, मकान मालकिन आंटी उन्हें घर का बना खाना देने को तैयार हो गई।बदले में मनोज आंटी के लिए राशन लेकर पहुंचा देते थे। अपने दोस्तों को उन्होंने यह बात बताई तो उन्होंने भी आंटी से खाना बनवाने के लिए कहा। धीरे-धीरे मनोज ने वहां रहने वाली एक अन्य किराएदार आंटी को भी छात्रों के लिए टिफिन सेवा देने के लिए उन्होंने तैयार कर लिया।
कालेज के दोस्तों को अच्छा खाना खिलवाने की यह तरकीब से मनोज को एक स्टार्टअप सूझा, जिसे उन्होंने ”माम्स फूड” का नाम दिया। उनके इस स्टार्टटप में बिलासपुर से इंजीनियरिंग करने वाले उनके मित्र विकास गुप्ता भी सहसंस्थापक है।
घर बैठे महिलाओं को रोजगार
मनोज के इस स्टार्टअप का आधार घरेलू महिलाएं हैं। माम्स फूड से जुड़कर काम कर रही स्वाती श्रीवास्तव व मिनाक्षी नामदेव ने बताया कि वे इससे जुड़कर 30 से 35 हजार रुपये महीने तक कमाई कर पा रही है। इसी तरह अन्य महिलाएं भी नियमित रोजगार कर रही है। शुरुआत में वे कंपनी से जुड़कर खाना बनाकर देने का काम करती थी।
भोजन स्वादिष्ट होने से लोग अधिक पसंद करने लगे तो अब उन्हें पदोन्नत कर रिसर्चर व ट्रेनर बना दिया गया है। अब वे दूसरी महिलाओं को नए-नए पकवान तैयार करने व स्वच्छता को बनाए रखने में मदद करती है ताकि कंपनी में खाने की गुणवत्ता अच्छी बनी रहे।
”थिंक बी” के साथ ने दिलाई सफलता
मनोज बताते हैं कि थिंक बी से उन्हें अपने स्टार्टअप को आगे बढ़ाने में मदद मिली। बस्तर के पूर्व कलेक्टर रजत बंसल ने युवा उद्यमियों को गति देने थिंक बी संस्था का गठन किया था, जो इस तरह के उद्यमियों को गाइडेंस देने का काम करती है। इससे बाजार को समझने, वेबसाइट बनाने से लेकर अन्य दिशा-निर्देश उन्हें मिले जिससे उन्होंने एक सफल व्यापारिक तंत्र बनाया।