वर्ष 2019 में राज्य सरकार द्वारा मिनीमाता पुरस्कार से सम्मानित रुक्मिणी चतुर्वेदी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसके पास आय का कोई साधन नहीं है।
वर्ष 2019 में राज्य सरकार द्वारा मिनीमाता पुरस्कार से सम्मानित रुक्मिणी चतुर्वेदी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसके पास आय का कोई साधन नहीं है। डायबिटीज और आहार नली की बीमारी से जूझ रही रुक्मिणी के पास दवाई के लिए पैसे नहीं हैं। इलाज के लिए पिछले दिनों शंकराचार्य मेडिकल कालेज में भर्ती थीं।
यहां डा. राहुल गुलाटी ने उसकी इलाज में मदद की। नारी उत्थान के लिए लंबे समय तक अपनी सेवाएं देने वाली रुक्मिणी ने आर्थिक मदद के लिए जिले के दो मंत्रियों के समक्ष गुहार लगाई, लेकिन उन्हें अब तक किसी तरह की मदद नहीं मिली।
अपने पिता और भाई के साथ रिसाली में रहने वाली रुक्मिणी चतुर्वेदी (48) को करीब 20 वर्ष से डायबिटीज है। वे दो वर्ष से आहार नली की थैली में सूजन से भी परेशान हैं। उन्होंने बताया कि वह इलाज के लिए दो माह तक शंकराचार्य मेडिकल कालेज जुनवानी में भर्ती थीं। बुधवार रात उसे अस्पताल से छुट्टी मिली।
रुक्मिणी ने बताया कि उसके पास आय का कोई साधन नहीं है। पैसे नहीं होने के कारण वे दवाई और इंसुलिन भी नहीं खरीद पा रही हैं। इलाज के लिए हर महीने करीब पांच हजार रुपये की जरूरत पड़ती है। अस्पताल में डा.राहुल गुलाटी ने उनकी मदद की।
2019 में हुई मिनीमाता पुरस्कार से सम्मानित
रुक्मिणी ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा उसे वर्ष 2019 में मिनीमाता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वे वर्ष 1990 से प्रौढ़ शिक्षा में काम कर रही थीं। इस दौरान रिसाली सहित आसपास के गांवों में बुजुर्गों को पढ़ाने का काम किया। साथ ही नारी उत्थान की दिशा में भी उन्होंने दुर्ग, धमतरी, बालोद जिला के अलग-अलग गांवों में अपनी सेवाएं दी हैं।
रुक्मिणी ने बताया कि महिला स्व सहायता समूह का गठन कर उन्होंने करीब 50 हजार महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई का प्रशिक्षण दिलाया। सरकारी योजना में करीब 20 हजार लोगों को सिलाई मशीन दिलाने में भी मदद की है।
350 रुपये पेंशन में कैसे होगा गुजारा
रुक्मिणी ने बताया कि वर्ष 2014 में उसके पति की मौत हो गई। पति की मौत के बाद वह रहने के लिए अपने माता-पिता के पास रिसाली आ गई। रिसाली में उसके माता-पिता, भाई और उसका परिवार खेती किसानी कर अपना गुजर बसर कर रहा है।
उन्होंने बताया कि उसे हर महीने 350 रुपये विधवा पेंशन मिलती है। इसके अलावा आय का कोई माध्यम नहीं है। उन्होंने मंत्री गुरु रुद्र कुमार और ताम्रध्वज साहू के समक्ष आवेदन कर आर्थिक मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन अब तक मदद नहीं मिली।
सातवीं के बच्चे पढ़ रहे धूरा शिल्प कला
रिसाली स्थित निवास में रुक्मिणी उस पुस्तक के पन्ने पलट रही थीं, जिसमें वेस्ट मटेरियल से बनाई उसकी कलाकृतियां हैं। दरअसल उन्होंने वेस्ट मटेरियल का बेहतर इस्तेमाल कर अलग-अलग कलाकृतियां बनाई हैं।
यह केले के पेड़ से बनी हुई हैं। इसका प्रशिक्षण बच्चों को दिया गया। राज्य सरकार ने कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया है।