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अति महत्वपूर्ण न्यूज़ :छत्तीसगढ़ में स्थित है 11वीं शताब्‍दी का अति प्राचीन शिव का एक मंदिर ; शिवलिंग पर पड़ती है सूरज की पहली और आखिरी किरण

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Shiv Temple in CG: छत्‍तीसगढ़ में है 11वीं शताब्‍दी का अति प्राचीन शिव मंदिर, शिवलिंग पर पड़ती है सूरज की पहली और आखिरी किरण

बिलासपुर शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर मां महामाया की नगरी रतनपुर में ऐतिहासिक कृष्णार्जुनी तालाब के पास स्थित है सूर्येश्वर महादेव का

Shiv Temple in Chhattisgarh: रायपुर। छत्‍तीसगढ़ के बिलासपुर शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर मां महामाया की नगरी रतनपुर में ऐतिहासिक कृष्णार्जुनी तालाब के पास स्थित है सूर्येश्वर महादेव का मंदिर। इसे अत्यंत प्राचीन मंदिर माना जाता है। कहते हैं कि पहले शिवलिंग पर पड़ने वाली किरणों से समय का निर्धारण होता था। शिवलिंग पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्यदेव की किरणें पड़ती हैं।

शिव मंदिर का इतिहास

मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में शिवभक्त राजा रत्नदेव ने करवाया था। सूर्य देव की सबसे पहली किरण इसी मंदिर में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है। इससे मंदिर का नाम सूर्येश्वर महादेव पड़ा। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन राजा मोरध्वज की परीक्षा लेने आए थे, तब मंदिर के पास तालाब के किनारे कुछ पल विश्राम किया था।

सूर्येश्वर महादेव मंदिर की विशेषता

मान्यता है कि भक्त आस्था और भक्ति के साथ कृष्णार्जुनी तालाब में स्नान करके सूर्येश्वर महादेव की पूजा करते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस वजह से मंदिर में हमेशा ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है। वहीं सावन और शिवरात्रि में विशेष पूजा होती है। दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं।

कल्चुरीकालीन छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर में मंदिर को वेधशाला और ज्योतिषि विज्ञान के केंद्र के रूप में भी उपयोग किया जाता था। समय निर्धारण के साथ ही ज्योतिष पंचांग का निर्माण भी इसी से होता था। मंदिर में सूर्यदेव की बलुआ पत्थर से बनी दुर्लभ प्रतिमा मंदिर की दीवार में अभी भी लगी हुई है। इसके साथ ही खंडित अवस्था में शिलालेख भी है।

पं. मनीष पांडेय का कहना है, हरि और हर में कोई भेद नहीं है। संपूर्ण 18 पुराणों में शिव के दर्शन होते हैं। आदि देव भगवान शिव को इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि सृष्टि के तीन तत्व में समाहित सत, रज और तम तीन गुण सृष्टि में व्याप्त हैं। इन्हीं तत्वों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के दर्शन होते हैं। यहां का मंदिर ज्योतिष विज्ञान के लिए भी बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण रहा है। उसी के अनुसार यहां पंचांग का निर्माण किया जाता था और काल व समय का निर्धारण किया जाता था।

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