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विधानसभा चुनाव से छह महीना पहले टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगा था कि अब सरगुजा की बाजी सेट हो जाएगी, लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।

HIGHLIGHTS

  1. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के लिए सरगुजा का रण काफी अहम
  2. बृहस्पत सिंह ने टीएस सिंहदेव पर लगाया था हत्या कराने की साजिश का आरोप
  3. सरगुजा की 14 विधानसभा सीट पर टीएस सिंहदेव का माना जाता है प्रभाव

विधानसभा चुनाव से छह महीना पहले टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगा था कि अब सरगुजा की बाजी सेट हो जाएगी, लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। टीएस सिंहदेव तो लगभग-लगभग सेट हो गए हैं, लेकिन सरगुजा अपसेट हो गया है। सिंहदेव का सरगुजा में दौरा चल रहा है और उनके विरोधियों की धड़कन तेज हो गई है।

ढाई-ढाई साल के फार्मूले के दौरान कुछ विधायकों ने सिंहदेव का खुलकर विरोध किया था। उस समय सिंहदेव ने सीमित विरोध किया था, लेकिन अब पावर आने के बाद खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं। सिंहदेव के निशाने पर विधायक बृहस्पत सिंह और चिंतामणि महाराज हैं।

कांग्रेस और भाजपा के लिए सरगुजा का रण काफी अहम

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के लिए सरगुजा का रण काफी अहम माना जा रहा है। भाजपा ने पहली सूची में 21 प्रत्याशियों की घोषणा की है, जिसमें सरगुजा की तीन विधानसभा सीट है। कांग्रेस ने भी सरगुजा पर फोकस करते हुए

चुनाव से छह महीना पहले मंत्री टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई। पिछले विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से सिंहदेव को कांग्रेस के केंद्रीय संगठन ने फ्री हैंड दिया था। एक-एक सीट पर सिंहदेव की सहमति के बाद उम्मीदवार घोषित किए गए थे।

बताया जा रहा है कि मंत्री अमरजीत भगत, पूर्व मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम, विधायक बृहस्पत सिंह और चिंतामणि महाराज ने तो सिंहदेव का खुलकर विरोध किया था। अब उनकी विधानसभा सीट पर अन्य दावेदार ताल ठोंक रहे हैं। सिंहदेव समर्थक किसी भी कीमत पर विरोध करने वालों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।

यही नहीं, कांग्रेस संगठन और सरकार ने जो सर्वे कराया है, उसमें भगत को छोड़कर अन्य तीनों विधायकों की सेहत खराब बताई गई है। यही कारण है कि भूपेश सरकार के एकलौते मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा गया था। अब संकेत मिल रहे हैं कि सरगुजा के टिकट वितरण में बड़ा उलटफेर हो सकता है।

आतंरिक गुटबाजी में सिंहदेव की सीट पर 108 दावेदार

प्रदेश में कांग्रेस ने ब्लाक स्तर पर टिकट के लिए आवेदन शुरू किया था। प्रदेश की इकलौती सीट अंबिकापुर से 108 दावेदार सामने आए। बताया जा रहा है कि मंत्री भगत के करीबी खाद्य आयोग के अध्यक्ष गुरप्रीत सिंह बाबरा ने सबसे पहले सिंहदेव के खिलाफ दावेदारी की। उसके बाद सिंहदेव समर्थकों ने बाबरा की दावेदारों को सिरे से खारिज कराने के लिए दनादन आवेदन किए। हाल यह हुआ कि कांग्रेस का कोई भी पदाधिकारी और सिंहदेव समर्थक कोई भी नेता ऐसा नहीं बचा, तो टिकट न मांग रहा हो।

जशपुर में भी बदले-बदले से हैं समीकरण

सरगुजा संभाग के जशपुर की तीन विधानसभा सीट पर भी इस बार समीकरण बदले-बदले नजर आ रहे हैं। यहां की एक सीट पर वरिष्ठ आदिवासी नेता और हाल ही में भाजपा छोड़कर आए नंदकुमार साय की दावेदारी है। वहीं, एक सीट पर एक आइएएस की मां की दावेदारी सामने आई है।

यही नहीं, एक रिटायर्ड आइएएस जशपुर की एक सीट से पिछले चुनाव से ही टिकट की मांग कर रहे हैं। हालांकि जशपुर की तीनों सीट के विधायकों का रिपोर्ट कार्ड संतोषजनक नहीं पाया गया है। अब सबकी निगाह चुनाव समिति पर टिकी हुई है, जिसमें सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के साथ खुद टीएस सिंहदेव सदस्य हैं।