भरोसे का नहीं धोखे का बजट_ अशोक कुर्रे, संवेदनहीन और संवादहीनता की स्तिथि में सरकार

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सिटी न्यूज़ रायपुर। रायपुर। छत्तीसगढ़ मनरेगा कर्मचारी महासंघ के प्रांताध्यक्ष अशोक कुर्रे ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भूपेश सरकार अपने 2023_ 24 के बजट को भरोसे का बजट बताकर प्रस्तुत कर रही है जबकि सत्यता बिलकुल विपरित है। छत्तीसगढ़ के मनरेगा कर्मचारियों के लिए यह धोखे का बजट है। हमारे 66 दिन के हड़ताल को कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने हमारे मंच में आकर ari मांगों को 3 माह में पूर्ण करने का वादा किया था, किंतु 8 माह बाद भी कोई पहल नहीं की गई। 8 माह से हम मनरेगा कर्मचारी अपनी मांगों को पूरा करने कई प्रयास किए किंतु सरकार को तरफ से कोई संवाद कायम नहीं किया गया।


45 डिग्री तापमान में मनरेगा कर्मचारी , रोजगार सहायक जिसमें महिलाएं अपने दूध मुहे बच्चो के साथ दंतेवाड़ा से रायपुर तक 400 कि. मि. की पदयात्रा की थी लेकिन इस सरकार की संवेदना तब भी नहीं जगी थी। हड़ताल तुड़वाने के लिए इन्होंने छल_ कपट और धोखे का सहारा लिया।
इस बजट से प्रदेश के लाखों संविदा दैनिक वेतन भोगी अनियमित कर्मचारियों को काफी उम्मीदें थी, किंतु सरकार की सोच अब दूध का दूध और पानी का पानी की तरह बिलकुल साफ हो गई है। जो सरकार अपने जन घोषणा पत्र में संविदा कर्मियों को नियमित करने के वादे को साढ़े चार साल में पूरा नहीं कर पाई उसके शेष बचे कार्यकाल अर्थात 6 माह में कैसे पूरा करेगी भरोसा नहीं किया जा सकता।


जो सरकार बड़े बड़े बेनर लगा कर 6 माह से छत्तीसगढ के भोले भाले, गांव_ देहात के रहने वाले ग्रामीणों को भ्रमित कर रही है कि रोजगार सहायक को 9540 रु देंगे किंतु आजपर्यंत नहीं दिया जा रहा है। इस बजट से मनरेगा कर्मचारियों का विश्वास सरकार से उठ रहा है, समय रहते अगर सरकार जागती नहीं है तो इसका भी नतीजा पूर्वर्ती सरकार की तरह ही झेलना पड़ेगा।


भूपेश सरकार अगर 15 दिनों में अपने वादे अनुरूप हमें नियमितीकरण नही करती तो हम एक बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। छत्तीसगढ़ के मनरेगा कर्मचारी लालफीताशाही की शोषण और प्रताड़ना से बहुत ही क्रोधित है अपने ही प्रदेश में हमारी पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं है। एक तरफ जहां पड़ोसी राज्यों में मनरेगा कर्मचारियों को नियमित किया जा रहा वहीं बीते दिनों छत्तीसगढ़ में 1979 पदों की कटौती का प्रस्ताव भी शासन को भेजा गया है । हम गांव देहात में ग्रामीण मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने वाले गांव के ही कर्मचारी है। हमें मात्र अपनी वाहवाही और प्रमोशन पाने के लिए कोल्हू के बैल की तरह जोता जा रहा है। सरकार सचेत नहीं होती तो आने वाले दिनों में पछताना पड़ सकता है।