

नया रायपुर स्थित रिसॉर्ट में रविवार की दोपहर अनुपम खेर के नाम रही। हंसी-मजाक, शेर-ओ-शायरी, डॉ. डेन का डायलॉग और अपनी जर्नी सुनाकर सवा घंटे तक लोगों को बांधे रखा। मौका था ऑल इंडिया स्टील कॉन्क्लेव (All India Steel Conclave in raipur) का। खेर यहां बतौर मोटिवेशनल स्पीकर आमंत्रित थे। खास बात यह रही कि वे अपनी बातचीत में वहां मौजूद लोगों को इन्वॉल्व कर रहे थे। एक दर्शक के सवाल पर बोले- विनर्स बिलीव इन हार्डवर्क, क्योंकि लक एक बार ही साथ दे सकता है बार-बार नहीं।
कार्यक्रम शुरू होने के कुछ देर में ही उनका सामना एक पर्ची से हुआ। उसमें लिखा था कि प्लीज आप खड़े होकर स्पीच दें। वह पर्ची संस्था के चेयरमैन रमेश अग्रवाल ने भिजवाई थी। इस पर चुटकी लेते हुए खेर ने कहा जैसी आपकी आज्ञा। जो माल देता है वो मालिक होता है। थोड़े माल तो मैंने भी लिए हैं। खेर ने एक सिलसिले में उन्हें मंच पर भी बुलाया। हंसी-ठिठोली में उनसे पूछा कि आपने मुझे ऐसा क्यों कहा? रमेश ने सहज भाव से जवाब दिया कि कम्युनिकेशन गैप हो रहा था।
मैंने सारी सीख अपने परिवार से ली है। हमारा 14 सदस्यों का संयुक्त परिवार था। हम गरीब थे लेकिन खुश थे। जब इंसान गरीब होता है तो उसके लिए सबसे सस्ती खुशी होती है। पढ़ाई में मेरे कभी 38 प्रतिशत से ज्यादा माक्र्स नहीं रहे। खेलकूद में भी मैं फिसड्डी था। जब रनिंग करता तो कोच कहता कि रुक जा। अकेले दौड़ेगा तब भी सेकंड ही आएगा। एक बार परीक्षा में मैं क्लास में 59वें नंबर पर आया। पिताजी ने पूछा कि कुल कितने बच्चे थे। मैंने कहा 60. वे मुझे डिमोटिवेट नहीं करना चाहते थे, इसलिए बोले-अगली बार 48वें तक आ जाना। इससे एक बात तो समझ में आ गई कि जब हम बहुत पीछे रहते हैं तो आगे आने के चांस भी उतने रहते हैं। हमेेशा याद रखें कि इवेंट फेल होता है इंसान नहीं।
विवेक अग्निहोत्री ने जब मुझे कश्मीर फाइल्स की कहानी सुनाई तो मैं न्यूयार्क में था। कहानी सुनने के बाद मैंने कहा कि ऐसे ही बनाओगे तो ही रोल करूंगा, क्योंकि वही सच था। मैं खुद कश्मीरी पंडित हूं इसलिए मैंने करीब से उन घटनाओं को महसूस किया है। मैंने सोचा कि उस किरदार को कैसे अमर कर सकता हूं, तब मैंने उस चरित्र का नाम अपने पिता पुष्कर नाथ पर रखा। इसके पीछे मकसद था कि जो भी सीन करूंगा वह झूठा नहीं होगा। मैं हर सीन के बाद रो देता था। सच वो दीया है जिसे पहाड़ की चोटी पर भी रख दो तो रोशनी भले कम देगा लेकिन दूर से दिखाई देता है। इस फिल्म में मैंने नहीं, मेरी आत्मा ने काम किया है। अगर आपको किसी से कुछ नहीं चाहिए तो उसे आप सच बोल सकते हैं।
3 जून 1981 को मैं मुंबई गया। 27 दिन रेलवे स्टेशन में गुजारे। सिर पर बाल नहीं होने के कारण मुझे वहां काम नहीं मिल रहा था। कोई मुझे राइटर बनने या कुछ और करने की सलाह दे रहा था। जबकि मैं एनएसडी पासआउट था। मैंने दादाजी को चि_ी लिखी और कहा कि मैं वापिस आना चाहता हूं। दादाजी की चि_ी आई। लिखा- तुम्हारे मां-बाप ने बहुत कुछ त्याग किया है तुम्हें वहां तक पहुंचाने में। भीगा हुआ आदमी बारिश से नहीं डरता। उनके ये शब्द मानो बिजली से कौंध गए। मैं फिर से अपने टारगेट पर फोकस करने लगा।
अनुपम खेर खड़ा है और आप फोन देख रहे हैं
कार्यक्रम के दौरान एक व्यक्ति को फोन बजा तो उसका ध्यान कुछ देर के लिए मोबाइल पर गया। इस पर खेर ने कहा कि किसका फोन है? मजाकिया लहजे में कहने लगे कि यार तुम्हारे सामने 534 फिल्में कर चुका अभिनेता खड़ा है और तुम मैसेज देख रहे हो। खेर ने उनका फोन लेकर मैसेज रीड किया। बोले मैं इसलिए पढ़ रहा हूं कि ताकि इसे पब्लिकली कर सकता हूं या नहीं। इस पर सभी ने जमकर ठहाके लगाए।
सबसे पीछे एक महिला ने खेर को अपना आइडियल बताया और कहा कि मेरे पति भी आपके जैसे दिखते हैं। खेर ने दोनों को मंच पर बुलवाकर एक-दूसरे से आईलवयू बोलने कहा। यह नजारा ऐसा था कि दर्शक दीर्घा से लेकर स्वयं खेर खूब ठहाके लगा रहे थे। दरअसल महिला ने कहा कि मेरे पति झूठ बोलते नहीं। इसलिए वे मुझे आईलवयू मत बुलवाइए। थोड़ी नोकझोंक के बाद दोनों ने एक-दूसरे से आईलवयू कहा।

