

सरकारी योजनाओं में किस तरह रुपयों की बर्बादी हो रही है। उसकी नजीर है… छत्तीसगढ़ के जलसंसाधन विभाग का वाटर मास्टर प्लान, जो बीते 17 साल में भी नहीं बन पाया। भास्कर इनवेस्टिगेशन में केंद्र के जलशक्ति मंत्रालय के अधीन काम करने वाली मिनी रत्न कंपनी वॉपकास के एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। दरअसल, 2006 में प्रदेश के जलसंसाधन विभाग ने वॉपकास कंपनी को 4 करोड़ के अनुबंध के साथ वाटर मास्टर प्लान बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
करार के मुताबिक कंपनी को 4 सितंबर 2008 तक पूरा प्लान बनाकर विभाग को सौंपना था। इस अवधि में प्लान बना ही नही और हैरान करने वाली बात है कि कंपनी को पूरे रुपये का भुगतान भी कर दिया गया। केवल यही नहीं, वाटर मास्टर प्लान बनाने के लिए इस अवधि में कई सारी बैठकें हुई जिस पर लाखों रुपए फूंक दिए गए।
2018 में नई सरकार के कामकाज संभालने से पहले वाटर मास्टर प्लान नहीं बनाने के कारण कंपनी पर एक आंतरिक जांच भी बैठाई गई। लेकिन जिस कमेटी ने पूरे गोलमाल को उजागर किया, उसकी रिपोर्ट भी दबा दी गई। 2020 में इसकी जांच के लिए फिर कमेटी बनाई गई। उसे भी दबा दिया गया।
भास्कर के पास आंतरिक जांच रिपोर्ट और मास्टर प्लान के एक हजार से ज्यादा पन्नों वाले दस्तावेज हैं। जिसकी नए सिरे से भास्कर इनवेस्टिगेशन टीम ने स्टडी की। पता चला कि वाटर प्लान के लिए तकनीकी सलाहकार समिति की बैठकें 9 बार हुईं।
जल संसाधन विभाग में इसके लिए मास्टर प्लान सेल भी बनाया गया था। जिसका अब वजूद तक नहीं है। 2018 में प्रदेश के सभी नदी-कछारों के एक्जीक्यूटिव इंजीनियरों से वाटर मास्टर प्लान पर तकनीकी सुझाव और बिंदुवार संशोधन मांगा गया था। पड़ताल में पता चला है कि बिंदुवार संशोधन ही नहीं दिए गए हैं।
बड़ा सवाल }2014 में कंपनी ब्लैकलिस्टेड
पड़ताल के मुताबिक 2014 में वॉपकास कंपनी को जल संसाधन विभाग ने ब्लैकलिस्ट किया। उस अवधि तक कंपनी को लगभग 4 करोड़ रुपए पेमेंट कर दिया गया। विभाग को इस चूक का अहसास 2018 में हुआ। उसके बाद कुछ इंजीनियरों की टीम बनाई गई जो कंपनी से मास्टर प्लान पर सवाल जवाब कर सके। लेकिन बाद वो टीम भी डिएक्टिवेट कर दी गई। कंपनी को रिमाइंडर भेजे, जिनका जवाब आज तक नहीं मिला। कंपनी ने अनुबंध के वक्त विभाग के इंजीनियों को साफ्टवेयर बनाने की ट्रेनिंग का वादा किया था। उसने सिर्फ बैठकें कीं, यह काम नहीं किया। बैठकों के अलावा हवाई यात्राओं और बड़े शहरों के होटल में बड़ा खर्च हुआ। कंपनी को प्लान में बताना था कि छत्तीसगढ़ की जरूरत के मुताबिक कहां बांध, एनिकट बनाए जाने चाहिए। ग्राउंड वाटर और सरफेस वाटर का प्रबंधन कैसे होना चाहिए? ताकि राज्य में सूखे की स्थिति न बने। पड़ताल में पता चला है कि आंतरिक जांच के दौरान कंपनी को 4 करोड़ रुपए के भुगतान पर सवाल भी उठाया गया।


अन्बलगन पी (आईएएस), सचिव, जलसंसाधन विभाग
- सवाल : वापकॉस कंपनी को वाटर मास्टर प्लान बनाना था। क्या स्थिति है?
- जवाब : कंपनी ने जो प्लान विभाग को सौंपा था, उसमें कमियां थीं। उसे खारिज कर दिया गया।
- सवाल : कंपनी को 2 साल में कंपनी को प्लान देना था? 17 साल हो गये?
- जवाब : आंतरिक जांच के बाद कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर है। कई कारण बताओ नोटिस दिए थे।
- सवाल : वाटर मास्टर प्लान पर अब आपके विभाग का क्या एक्शन है?
- जवाब : वापकॉस को दोबारा प्लान देने कहा है। यह हमारी जरूरतों के अनुरूप होना चाहिए।
- सवाल : इसके लिए विभाग कंपनी को नया भुगतान करेंगे?
- जवाब : बिल्कुल नहीं, क्योंकि पहले ही भुगतान कर चुके हैं। नए प्लान के लिए कोई पेमेंट नहीं देंगे।
एक्सपर्ट }प्लान में भविष्य की बातें नहीं होंगी
पी के नायक, रिटा. रीजनल डायरेक्टर, सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड
किसी भी राज्य का वाटर मास्टर प्लान आम तौर पर 25 साल के लिए दीर्घ अवधि का दस्तावेज होता है। इसी से ग्राउंड और सरफेस, दोनों ही तरह की जल संसाधन संबंधी नीतियां बनती हैं। छत्तीसगढ़ के वाटर मास्टर प्लान में देरी इसलिए गंभीर है क्योंकि अगले 25 साल के लिए प्रदेश की जल से जुडी़ सारी प्लानिंग पिछड़ गयी है। भविष्य में ऐसी क्या नयी योजनाएं बनाई जाएं, जिससे भविष्य में पानी की कमी न हो, प्लान में ऐसी बात नहीं होगी।

