चिकित्सा शिक्षा विभाग में प्रशासनिक स्थिरता की कमी स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही है। बीते 27 महीनों में विभाग में 7 कमिश्नर बदले जा चुके हैं। यानी हर चौथे महीने एक नया अधिकारी पद पर नियुक्त हो रहा है। इस निरंतर बदलाव से विभागीय कामकाज पर गहरा असर पड़ा है।

जनवरी 2023 में चिकित्सा शिक्षा विभाग में कसावट लाने के उद्देश्य से ‘कमिश्नर’ का नया पद सृजित किया गया था, जो डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन (DME) से ऊपर माना गया। लेकिन जानकारों का कहना है कि DME और मुख्य सचिव के वेतनमान समान होते हैं, ऐसे में कम सीनियर आईएएस अफसर को DME के ऊपर बैठाना तार्किक नहीं लगता।

नवीनतम बदलाव: शिखा राजपूत बनीं नई कमिश्नर

राज्य शासन ने हाल ही में किरण कौशल को हटाकर शिखा राजपूत तिवारी को नया कमिश्नर नियुक्त किया है। किरण कौशल ने अगस्त 2024 में पदभार संभाला था और लगभग 9 महीने तक इस पद पर रहीं। इससे पहले जेपी पाठक ने जनवरी से अगस्त 2024 तक सेवाएं दी थीं। यानी अधिकतम कार्यकाल 9 महीने ही रहा है।

समस्या की जड़: नियमों की जटिलता और कम रुचि

विभाग में नेशनल मेडिकल कमीशन, डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया और इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियम इतने जटिल हैं कि नॉन-मेडिको आईएएस अफसरों के लिए इन्हें समझना चुनौती बन जाता है। कई अधिकारी इसे लूपलाइन की पोस्ट मानते हैं और यहां से जल्दी निकलने की फिराक में रहते हैं।

पावर ट्रांसफर विवाद: हाईकोर्ट तक पहुंचा मामला

जनवरी 2023 से पहले DME के ऊपर हेल्थ कमिश्नर और हेल्थ सेक्रेटरी होते थे। लेकिन कमिश्नर के सृजन के बाद DME के लगभग सभी अधिकार कमिश्नर को दे दिए गए, जिससे विवाद पैदा हुआ। रिटायर्ड DME डॉ. विष्णु दत्त ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, यह कहते हुए कि विभागीय सेटअप में कमिश्नर का कोई पद नहीं है। हालांकि यह मामला अदालत में निर्णय से पहले ही रफा-दफा हो गया।

कमिश्नर बनने की वजह: आईएएस अफसर की नाराजगी?

बताया जाता है कि कमिश्नर पद एक वरिष्ठ आईएएस अफसर की नाराजगी के चलते बनाया गया था, जो अब प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। वहीं, मेडिकल टीचर एसोसिएशन की भूमिका इस पूरे विवाद में बेहद कमजोर रही।

अब तक ये रहे कमिश्नर:

नम्रता गांधी

अब्दुल कैसर हक

जयप्रकाश मौर्य

चंद्रकांत वर्मा (प्रभारी)

जेपी पाठक

किरण कौशल

शिखा राजपूत तिवारी (वर्तमान)

विभाग में लगातार मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में प्रशासनिक स्थायित्व और स्पष्ट नेतृत्व की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है।