बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर एंबुलेंस सुविधा न मिलने के चलते एक कैंसर पीड़ित महिला की मौत के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इस गंभीर लापरवाही पर स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका के तहत सुनवाई शुरू की और राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सचिव तथा रेलवे के डीआरएम से जवाब तलब किया है।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि सरकार की ओर से चलाई जा रही मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं कागजों तक सीमित हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि ज़रूरत के समय आम नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं। कोर्ट ने पूछा है कि आपातकालीन स्थिति में एंबुलेंस सेवा क्यों नहीं उपलब्ध हो पा रही है, और अब तक इस व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए क्या ठोस कदम उठाए गए हैं।

इस जनहित याचिका में बताया गया कि रायपुर से बिलासपुर पहुंची एक 62 वर्षीय कैंसर मरीज महिला रानी बाई की ट्रेन में मौत हो गई थी। स्टेशन पर एंबुलेंस ड्राइवर मौजूद नहीं था, और काफी देर बाद जब वह आया भी, तो शव को ले जाने से मना कर दिया। परिजनों को निजी प्रयास से दूसरी एंबुलेंस बुलानी पड़ी, जिससे करीब एक घंटे की देरी हुई।

दूसरी घटना दंतेवाड़ा जिले के गीदम की है, जहां एक गंभीर मरीज को 11 घंटे तक 108 एंबुलेंस सेवा नहीं मिल सकी। लगातार कॉल के बावजूद एंबुलेंस सुबह के बजाय रात में पहुंची, जिससे इलाज में देरी हुई और मरीज की जान चली गई।

इन घटनाओं को हाईकोर्ट ने बेहद गंभीर मानते हुए कहा कि यदि कैंसर मरीजों और आपातकालीन मामलों में भी एंबुलेंस नहीं मिल रही है, तो यह प्रशासनिक विफलता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि रेलवे के पास अपना अस्पताल होने के बावजूद एंबुलेंस सेवा उपलब्ध न होना और स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता, दोनों ही जनता के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं।

कोर्ट ने अगली सुनवाई से पहले विस्तृत जानकारी देने के निर्देश के साथ राज्य सरकार और रेलवे प्रशासन से लिखित जवाब मांगा है।