छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में 16 जून से नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने जा रहा है, लेकिन एक बार फिर छात्रों को जर्जर भवनों में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ेगी। जिले के कई गांवों में स्कूल भवन खस्ताहाल हैं, इसके बावजूद अब तक नए भवनों या अतिरिक्त कमरों के निर्माण की दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी है।
शासन ने भले ही खराब हालत वाले स्कूल भवनों की जानकारी मंगाई हो, लेकिन युक्तियुक्तकरण और सुशासन त्यौहार की तैयारियों में व्यस्त अधिकारियों के कारण ज़्यादातर स्कूलों से जानकारी नहीं पहुंच पाई।
शिक्षा विभाग के सूत्रों के मुताबिक जिले के 53 स्कूलों के लिए अतिरिक्त कक्षों के निर्माण हेतु प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इनमें से करीब 30 स्कूल जर्जर अवस्था में हैं। यानी फिर से बच्चों को कमजोर और खतरनाक भवनों में पढ़ाई करनी होगी।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि जिले के तीन स्कूलों — सांकरा, पीपरछेड़ी और कमकापार — के लिए स्कूल भवन निर्माण की स्वीकृति तो तीन साल पहले ही मिल गई थी, लेकिन आज तक निर्माण कार्य की शुरुआत नहीं हो सकी। इन गांवों में पुराने स्कूल भवनों को ढहा दिया गया था, ताकि नए निर्माण को शुरू किया जा सके, मगर अब तक सिर्फ इंतज़ार ही हाथ आया है।
इन तीन स्कूलों के लिए 1 करोड़ 21 लाख 16 हजार रुपए की राशि मंजूर की गई थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद वित्त विभाग ने पूर्ववर्ती सरकार द्वारा स्वीकृत योजनाओं पर रोक लगा दी। इसका असर स्कूल भवन निर्माण पर भी पड़ा और तब से स्थिति जस की तस बनी हुई है।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने कार्यकाल के दौरान इन स्कूलों को स्वीकृति दी थी और बजट में राशि भी आवंटित कर दी गई थी। मगर नई सरकार के सत्ता में आते ही यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई और तब से प्रशासनिक स्तर पर भी कोई ठोस पहल नहीं हुई है।
नतीजा: स्कूली बच्चे अब भी बुनियादी सुविधाओं के बिना, खस्ताहाल इमारतों में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं।