छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में पत्रकारों से मारपीट करने वाले बाउंसरों को जेल से रिहा होते ही फूल-मालाओं से स्वागत कर जश्न मनाया गया। जिन आरोपियों को कुछ दिन पहले पुलिस ने अजीबोगरीब तरीके से सजा देते हुए आड़े-तिरछे बाल काटकर सड़क पर जुलूस निकाला था, अब वही आरोपी उसी सड़क पर माला पहनकर घूमते नजर आए। इस दौरान उनके स्वागत में जमकर पटाखे भी फोड़े गए।
हैरानी की बात यह रही कि जब यह पूरा घटनाक्रम चल रहा था, उस दौरान पुलिसकर्मी भी वहां मौजूद थे, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।
घटना की पूरी पृष्ठभूमि
यह मामला उस वक्त सुर्खियों में आया था जब उरला क्षेत्र में चाकूबाजी की एक घटना के बाद घायल को अंबेडकर अस्पताल लाया गया था। इसकी जानकारी मिलते ही कुछ टीवी पत्रकार मौके पर कवरेज के लिए पहुंचे। अस्पताल में तैनात प्राइवेट बाउंसर जतिन ने उन्हें अंदर जाने से रोका। इस पर जब पत्रकारों ने विरोध जताया, तो बाउंसर ने गाली-गलौज करते हुए धक्का-मुक्की शुरू कर दी।
बात बढ़ने पर अन्य पत्रकार भी वहां पहुंच गए। तभी बाउंसरों ने अपने साथियों को बुलाकर हमला कर दिया। इस हिंसक झड़प में कई पत्रकार घायल हो गए।
पत्रकार पर पिस्टल तानने का भी आरोप
हंगामे के दौरान बाउंसर वसीम अकरम उर्फ वसीम बाबू ने एक पत्रकार पर पिस्टल तान दी और जान से मारने की धमकी दी। पुलिस ने गंभीर धाराओं के तहत वसीम समेत चार आरोपियों—जतिन गंजीर, सूरज राजपूत, मोहन राव गौरी के खिलाफ केस दर्ज किया। पुलिस ने वसीम के पास से एक पिस्टल और 22 जिंदा कारतूस भी जब्त किए। इसके बाद चारों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
जुलूस के बाद अब जश्न
पुलिस ने इन आरोपियों को पकड़ने के बाद शहर की सड़कों पर आड़े-तिरछे बाल काटकर जुलूस निकाला था। लेकिन अब जेल से रिहा होने के बाद यही आरोपी उसी जगह माला पहनकर जश्न मनाते घूमते नजर आए।
अस्पताल में बाउंसरों की मनमानी और ‘कमीशन राज’
इस पूरे मामले के बाद अंबेडकर अस्पताल प्रबंधन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सूत्रों की मानें तो अस्पताल में बाउंसरों की तैनाती में भारी कमीशन का खेल चलता है। आरोपी वसीम अकरम कई सरकारी संस्थानों में सुरक्षा ठेके चला रहा है। कुछ समय पहले उसका एक ऑडियो भी सामने आया था जिसमें वह नेताओं और अधिकारियों को कमीशन देने की बात करता हुआ सुना गया था।
कहा जा रहा है कि रसूखदार कैदियों को अस्पताल में विशेष सुविधा दिलवाने, उनके लिए फर्जी बीमारियों के बहाने अस्पताल में जगह दिलवाने और सुरक्षा देने का जिम्मा भी इन्हीं बाउंसरों के पास रहता है।
अब सवाल उठता है कि पत्रकारों से मारपीट करने वालों को किसके संरक्षण में इतनी जल्दी रिहा कर स्वागत किया जा रहा है, और पुलिस मूकदर्शक क्यों बनी रही?