बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जो स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन चुका है। डॉक्टरों का कहना है कि इसका मुख्य कारण बच्चों में बढ़ती मीठी चीजों की खपत और निष्क्रिय जीवनशैली है। चाय, कॉफी और रंग-बिरंगे सॉट ड्रिंक्स से बच्चों के शरीर में अत्यधिक मात्रा में चीनी पहुंच रही है, जिससे पेट के आसपास फैट जमा हो रहा है और मोटापा बढ़ रहा है। यही मोटापा आगे चलकर टाइप-2 डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी का रूप ले रहा है।
आंबेडकर अस्पताल सहित शहर के अन्य निजी अस्पतालों के बाल रोग विभाग में डायबिटीज से पीड़ित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जहां पहले केवल कुछ गिने-चुने मामले सामने आते थे, अब यह आंकड़ा सौ से ऊपर पहुंच गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, दिनभर में पांच से छह बार मीठे पेय पदार्थ पीने से बच्चों के शरीर में रोजाना 200 ग्राम से अधिक शक्कर पहुंच रही है। इससे सिर्फ मोटापा ही नहीं, बल्कि फैटी लिवर और डायबिटीज जैसी बीमारियां भी तेजी से पनप रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि डायबिटीज सीधे शक्कर खाने से नहीं होती, लेकिन जंक फूड और अत्यधिक मीठे पेय शरीर में फालतू कैलोरी जोड़ते हैं, जिससे वजन बढ़ता है और डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है।
डायबिटीज से पीड़ित बच्चों की उम्र 12-13 साल तक की है, और कई बार इससे छोटे बच्चे भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। युवाओं में भी इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आंबेडकर अस्पताल में हालांकि शुगर क्लीनिक नहीं है, लेकिन इंडोक्राइनोलॉजिस्ट अब विशेष रूप से बच्चों का इलाज कर रहे हैं।
राजधानी में हर गली-मोहल्ले में आसानी से मिलने वाले सॉट ड्रिंक और मीठे खाद्य पदार्थ बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बाल रोग विशेषज्ञों की सलाह है कि बच्चों को बचपन से ही मीठे से दूरी सिखाई जाए और माता-पिता को भी खुद एक आदर्श उदाहरण बनना चाहिए।
डॉ. आकाश लालवानी के अनुसार, एक व्यक्ति को प्रतिदिन अधिकतम 40 ग्राम चीनी का सेवन करना चाहिए, लेकिन आज के बच्चे इससे पांच गुना ज्यादा शक्कर ले रहे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है।