रायपुर। आज जिस छत्तीसगढ़ को ऊर्जा प्रदेश और ऊर्जा हब के रूप में जाना जाता है, वह राज्य गठन के समय गहरे बिजली संकट से जूझ रहा था। वर्ष 2000 में राज्य बनने के समय छत्तीसगढ़ में करीब 1400 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता था, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा तत्कालीन मध्यप्रदेश के पश्चिमी हिस्सों में चला जाता था। इससे आम उपभोक्ताओं को घरेलू, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए बिजली की भारी किल्लत होती थी।

राज्य गठन के बाद बिजली की खींचतान

1 नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़ बना, तो संसद द्वारा पारित अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान था कि प्रारंभिक वर्षों में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश बिजली का उपयोग एक निर्धारित अनुपात में करेंगे। यह अनुपात केंद्र सरकार द्वारा तय किया गया था, जो मध्यप्रदेश के हित में अधिक था। परिणामस्वरूप मंत्रालय, राजभवन और मुख्यमंत्री निवास तक को बिजली कटौती झेलनी पड़ती थी।

मुख्यमंत्री अजीत जोगी का सख्त निर्णय

राज्य गठन के तुरंत बाद, मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए नवंबर 2000 के दूसरे सप्ताह में मुख्य सचिव और वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाई। उन्होंने आदेश दिया कि छत्तीसगढ़ के लिए अलग विद्युत मंडल बनाया जाए और राज्य में उत्पादित बिजली का उपयोग यहीं किया जाए।

15 नवंबर 2000 को एकपक्षीय अधिसूचना जारी कर दी गई। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य में नया बिजली मंडल अस्तित्व में आया और मध्यप्रदेश को बिजली की आपूर्ति रोक दी गई। यह कदम कानूनी रूप से विवादास्पद था, लेकिन इसके चलते राज्य में बिजली कटौती बंद हो गई और छत्तीसगढ़ सरप्लस ऊर्जा राज्य बन गया।

मध्यप्रदेश में हड़कंप, केंद्र तक पहुंचा मामला

इस फैसले से मध्यप्रदेश में बिजली संकट गहरा गया, उद्योगों को परेशानी झेलनी पड़ी और राजनीतिक तनाव बढ़ गया। मामला कांग्रेस हाईकमान और केंद्र सरकार तक पहुंचा। बाद में समझौता हुआ कि छत्तीसगढ़ की अतिरिक्त बिजली पर मध्यप्रदेश को प्राथमिकता मिलेगी, लेकिन वह केवल तत्काल नकद भुगतान के आधार पर बिजली ले सकेगा।

ऊर्जा राज्य बनने की नींव

हालांकि यह कदम तकनीकी रूप से ‘गैर-कानूनी’ माना गया, लेकिन यही निर्णय छत्तीसगढ़ को आत्मनिर्भर ऊर्जा राज्य बनाने की दिशा में पहला और बेहद प्रभावशाली कदम साबित हुआ। आज छत्तीसगढ़ देश के प्रमुख ऊर्जा उत्पादक राज्यों में से एक है।