बिलासपुर (छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक विवादास्पद घटना सामने आई है, जिसमें 159 छात्रों को एक स्कूल में नमाज अदा करने के लिए मजबूर किया गया। पुलिस ने इस मामले में 7 शिक्षक और एक अन्य कर्मचारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। यह घटना 26 मार्च से 1 अप्रैल तक आयोजित किए गए एनएसएस (राष्ट्रीय सेवा योजना) शिविर के दौरान हुई। शिविर में भाग लेने वाले छात्रों में से केवल चार मुस्लिम थे, लेकिन फिर भी सभी छात्रों को नमाज अदा करने के लिए बाध्य किया गया।

पुलिस ने दर्ज की एफआईआर
कोटा थाना क्षेत्र के शिवतराई गांव में स्थित एक सरकारी स्कूल में हुई इस घटना के बारे में पुलिस अधिकारी ने जानकारी दी कि इन छात्रों को धार्मिक अनुष्ठान के दौरान नमाज पढ़ने के लिए बाध्य किया गया। मामला सामने आने के बाद संबंधित अधिकारियों ने तत्काल कार्रवाई करते हुए 7 शिक्षकों पर एफआईआर दर्ज की। पुलिस ने बताया कि इन शिक्षकों ने छात्रों को यह समझाए बिना नमाज पढ़ने के लिए मजबूर किया, जबकि उनमें से अधिकांश छात्र हिन्दू धर्म से थे और नमाज पढ़ने के लिए अनिच्छुक थे।

नमाज पढ़ने के लिए मजबूर करने की घटना
प्राप्त जानकारी के अनुसार, एनएसएस शिविर के दौरान शिवतराई गांव के सरकारी स्कूल में छात्रों से धार्मिक गतिविधियों के दौरान नमाज पढ़ने का आदेश दिया गया। बताया जा रहा है कि शिविर में करीब 159 छात्र शामिल थे, जिनमें से केवल 4 मुस्लिम थे। बावजूद इसके, इन सभी छात्रों को नमाज पढ़ने के लिए मजबूर किया गया। छात्रों के मुताबिक, जब उन्होंने इस बात का विरोध किया और यह बताया कि वे मुस्लिम नहीं हैं, तो उन्हें दबाव डालकर नमाज अदा करने के लिए कहा गया।

इस घटना के बाद कुछ छात्रों ने अपनी आपत्ति व्यक्त की और यह जानकारी अपने अभिभावकों को दी, जिनके द्वारा थाने में शिकायत दर्ज कराई गई। पुलिस ने शिकायत के आधार पर शिक्षक और अन्य जिम्मेदार कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया।

एफआईआर में क्या कहा गया है
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि इन शिक्षकों ने धर्म के आधार पर छात्रों से अवैध रूप से धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए बाध्य किया। आरोप है कि बच्चों को मानसिक रूप से परेशान किया गया और उनका धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया। पुलिस ने उन सात शिक्षकों और एक अन्य कर्मचारी को आरोपी बना दिया है, जो इस घटना में शामिल थे।

शिविर की गतिविधियों पर विवाद
एनएसएस शिविर का उद्देश्य छात्रों को सामाजिक सेवा और जागरूकता के बारे में प्रशिक्षित करना होता है, लेकिन इस बार यह शिविर धार्मिक गतिविधियों से जुड़ गया, जिससे पूरे मामले में विवाद खड़ा हो गया। शिविर में छात्रों को नमाज अदा करने के लिए बाध्य करना शिक्षा के उद्देश्य और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है। इसके साथ ही यह सवाल उठता है कि क्या स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों को धार्मिक गतिविधियों को अपने कार्यक्रमों का हिस्सा बनाना चाहिए या नहीं।

सरकारी प्रतिक्रिया और शिक्षा मंत्री का बयान
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए छत्तीसगढ़ के शिक्षा मंत्री ने कहा कि यह घटना शिक्षा के उद्देश्य से मेल नहीं खाती और मामले की जांच की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधियों के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होने दी जाएंगी।

समाज में प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद समाज के विभिन्न वर्गों में प्रतिक्रिया देखने को मिली है। धार्मिक स्वतंत्रता के पैरोकारों ने इस घटना की कड़ी आलोचना की है और इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया है। वहीं कुछ अन्य ने इसे एक गलती और शिक्षकों की अविचारिता बताया। इस मामले में विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी अपने-अपने बयान दिए हैं।

निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ के इस विवादास्पद मामले ने एक बार फिर शिक्षा संस्थानों में धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक समरसता के मुद्दे को तूल दिया है। बच्चों को किसी भी धर्म से जुड़ी गतिविधियों में भाग लेने के लिए मजबूर करना न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह शिक्षा के उद्देश्य के खिलाफ भी है। इस मामले में पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए कार्रवाई की है, लेकिन आगे इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए शिक्षा विभाग और राज्य सरकार को और सख्त कदम उठाने की आवश्यकता होगी।