बस्तर के गर्जन में बदलाव: अब हिड़मा के गांव में शिक्षा की गूंज

बस्तर के जिन इलाकों में कभी नक्सलियों का बोलबाला था, अब वहीं शिक्षा की एक नई अलख जल रही है। नक्सली संगठन के शीर्ष नेता हिड़मा के गांव पूवर्ती में अब बंदूक नहीं, किताबों की बात हो रही है। सीआरपीएफ ने यहां ‘गुरुकुल’ की स्थापना कर 100 से अधिक बच्चों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है।

सीआरपीएफ का शिक्षा मिशन: ‘गुरुकुल’ मॉडल की शुरुआत
राज्य और केंद्र सरकार की संयुक्त रणनीति और सुरक्षाबलों की बहादुरी ने बस्तर को नक्सलवाद से काफी हद तक मुक्त कर दिया है। अब बस्तर की पहचान सिर्फ संघर्ष से नहीं, बल्कि बदलाव और शिक्षा से भी हो रही है। सुकमा, बीजापुर जैसे जिलों में सीआरपीएफ ने ‘गुरुकुल’ मॉडल शुरू किया है – एक ऐसी पहल जहां जवान खुद बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

हिड़मा का गांव अब बन रहा बदलाव की मिसाल
कभी हिड़मा जैसे दुर्दांत नक्सली का गढ़ रहा पूवर्ती गांव अब शिक्षा की ओर बढ़ चला है। सीआरपीएफ द्वारा संचालित गुरुकुल में टेकलगुड़ेम और सिलगेर जैसे गांवों के करीब 80 बच्चे नियमित रूप से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन बच्चों को ‘शिक्षादूत’ नामक टीम पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी दे रही है।

100 किलोमीटर दूर तक पढ़ाई की लगन
कुछ बच्चे 100 किलोमीटर दूर कुआकोंडा स्थित पोटाकेबिन स्कूल में रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इनके माता-पिता ने नक्सली माहौल से बच्चों को निकालकर छात्रावासों में भेजने का फैसला लिया।

अधिकारियों की पहल और वादा
सीआरपीएफ के डीआईजी आनंद सिंह राजपुरोहित ने जानकारी दी कि वर्तमान में तीन गुरुकुल संचालित किए जा रहे हैं। कॉपी, किताब, खेल सामग्री से लेकर पोषण तक की जिम्मेदारी सीआरपीएफ उठा रही है।
सुकमा के जिला शिक्षा अधिकारी जीआर मंडावी ने बताया कि पढ़ाई छोड़ चुके 35 बच्चों को दोबारा स्कूलों से जोड़ा जा रहा है, और पूवर्ती में एक स्थायी स्कूल का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है।