(छत्तीसगढ़)। चिंगरापगार वॉटरफॉल की नैसर्गिक चट्टानों पर भालू, तेंदुआ, बंदर और मगरमच्छ जैसी दर्जनों आकृतियाँ उकेर कर वन विभाग ने खुद ही संरक्षित वन क्षेत्र को नुकसान पहुँचा दिया है। महज़ दो दिन (23-25 फरवरी 2025) में छह वर्क ऑर्डर जारी कर रायपुर की डायनमिक स्टोन आर्ट क्रिएटर को 17.66 लाख रुपये का ठेका दिया गया—जबकि ‘सौंदर्यीकरण’ मद में अधिकतम पाँच लाख की ही स्वीकृति थी।

नियमो का खुला उल्लंघन

चिंगरापगार प्रोटेक्टेड फ़ॉरेस्ट में चट्टान तोड़ना या उन पर नक्काशी करना नॉन-फॉरेस्ट्री एक्टिविटी है, जिस पर सख़्त रोक है।

वन विभाग ने भंडार क्रय नियम का सहारा लेकर हर ऑर्डर की राशि 3 लाख से कम दिखाई, ताकि सार्वजनिक टेंडर प्रक्रिया से बचा जा सके।

पारिस्थितिकी को कितनी चोट

1. सूक्ष्म जीवों का सफ़ाया – लाइकेन और साइनोबैक्टीरिया जैसी सूक्ष्म प्रजातियाँ नष्ट, जिससे जैविक संतुलन टूटेगा।

2. चट्टानों की कमज़ोरी – नक़्क़ाशी से दरारें बढ़ेंगी, बरसाती पानी और ताप परिवर्तन से कटाव तेज़ होगा।

3. मिट्टी का क्षरण – बायोलॉजिकल क्रस्ट टूटने पर आसपास पौधों की जड़ नहीं टिकेगी, धूलभरी परत बढ़ेगी।

4. स्थानीय तापमान में वृद्धि – प्राकृतिक एल्बिडो बदलने से पत्थर ज़्यादा गरम होंगे, सूक्ष्म जलवायु असंतुलन होगा।

शिकायतें और जवाब

पर्यावरण कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने अपर मुख्य सचिव (वन) और सीईसीबी को शिकायत भेजी है, कार्रवाई और नक्काशी हटाने की माँग की है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण पांडेय ने कहा, “शिकायत मिली है, जाँच जारी है।”

डीएफओ लक्ष्मण सिंह का दावा, “कोई गैर-वन गतिविधि नहीं हुई।”

बड़ा सवाल

जिस विभाग का दायित्व जंगल बचाना है, वही नियम तोड़ कर ‘सौंदर्यीकरण’ के नाम पर जैव-विविधता और सरकारी धन—दोनों का नुकसान कर रहा है। परिणामस्वरूप पर्यटन स्थल की प्राकृतिक खूबसूरती भी खतरे में है; यदि मिसाल बनी रही तो दूसरे संरक्षित क्षेत्रों में ऐसी

अवैध नक्काशी रुक पाना मुश्किल होगा।