छत्तीसगढ़ के बिल्हा ब्लॉक में कार्यरत एक महिला शिक्षक को फर्जी आदिवासी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी हासिल करने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। उर्मिला बैगा नाम की इस महिला पर आरोप था कि उन्होंने ओबीसी वर्ग की ‘ढीमर’ जाति से होने के बावजूद खुद को अनुसूचित जनजाति ‘बैगा’ बताकर शिक्षक पद पर नियुक्ति हासिल की थी।

साल 2006 में फर्जी प्रमाण-पत्र के जरिए उन्हें सरकारी नौकरी मिली थी और उन्होंने लगभग 18 वर्षों तक सेवा की। मामले की शिकायत होने पर रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की जांच समिति ने दस्तावेजों की विस्तृत जांच की। जांच में उनके पूर्वजों का रिकॉर्ड ‘ढीमर’ जाति का पाया गया, जो ओबीसी श्रेणी में आती है।

समिति ने 11 दिसंबर 2006 को उनका आदिवासी प्रमाण-पत्र अमान्य घोषित कर दिया, जिसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने 7 फरवरी 2007 को उनकी सेवा समाप्त करने का आदेश जारी किया। उर्मिला ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर उन्हें अस्थायी रूप से राहत (स्टे) मिल गई थी। इस दौरान वे लगातार नौकरी करती रहीं।

हालांकि, आगे चलकर उन्होंने खुद ही याचिका वापस ले ली, जिसे कोर्ट ने खारिज करते हुए पूर्व में दिया गया स्टे भी रद्द कर दिया। 24 जुलाई 2024 को उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने भी प्रमाण-पत्र को फर्जी करार दिया। इसके आधार पर संयुक्त संचालक शिक्षा आरपी आदित्य ने उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया।

इस मामले ने जाति प्रमाण-पत्रों की वैधता और सरकारी नौकरियों में फर्जीवाड़े के खिलाफ सख्त जांच की आवश्यकता पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।