रायपुर: छत्तीसगढ़ की आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) और एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की जांच में मेडिकल उपकरण और रिएजेंट्स की खरीद में गंभीर अनियमितताओं और प्रणालीगत भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। यह मामला 2023 में सामने आए मेडिकल खरीद घोटाले से जुड़ा है, जिसमें स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है।

EOW ने 25 अप्रैल को रायपुर की अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया, जिसमें स्वास्थ्य सेवा निदेशालय (DHS) और छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉरपोरेशन लिमिटेड (CGMSCL) की बड़ी लापरवाही की ओर इशारा किया गया है, जिससे राज्य सरकार को लगभग ₹500 करोड़ का वित्तीय नुकसान हुआ।

अब तक इस मामले में छह आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है — शशांक चोपड़ा, बसंत कुमार कौशिक, क्षीरोद्र राउतिया, डॉ. अनिल परसाई, कमकलकांत पाटनवार और दीपक बांधे — जिन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।

EOW की जांच में पाया गया कि टेंडर समिति की बैठकें उचित तरीके से आयोजित नहीं की गईं, न ही सभी सदस्यों के हस्ताक्षर लिए गए और न ही प्रक्रियाओं का पालन किया गया। इसके बजाय अधिकारियों ने “टेबलटॉप एक्सरसाइज” के जरिए प्रक्रियागत नियमों को दरकिनार कर महत्वपूर्ण जानकारियों को छिपाया।

2 जून 2023 को CGMSCL ने ₹314.81 करोड़ के क्रय आदेश बिना अनुमोदित बजट और प्रशासनिक स्वीकृति के जारी कर दिए। यह सब केवल संभावित बजट स्वीकृति के आधार पर किया गया, जो वित्तीय अनुशासन का उल्लंघन है।

DHS द्वारा रिएजेंट्स के सुरक्षित भंडारण हेतु जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर — जैसे कि 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले रेफ्रिजरेटर — की अनुपलब्धता के बावजूद CGMSCL को रिएजेंट्स वितरित करने का निर्देश दिया गया, जिससे बड़ी मात्रा में रिएजेंट्स खराब होकर बर्बाद हो गए।

एक और बड़ी गड़बड़ी EDTA ट्यूब्स की महंगे दामों पर खरीद में सामने आई। जहां बाजार में यह ट्यूब्स ₹1.50 से ₹8.50 प्रति यूनिट मिलती हैं, वहीं CGMSCL ने इन्हें ₹23.52 और ₹30.24 प्रति यूनिट के हिसाब से खरीदा, जिससे लगभग ₹2 करोड़ का नुकसान हुआ। जांच में पाया गया कि निजी कंपनी मोक्षित मेडिकेयर प्राइवेट लिमिटेड को फायदा पहुंचाने के लिए जानबूझकर प्रक्रियाओं में देरी और हेरफेर की गई।

आरोपपत्र में कहा गया कि तकनीकी समिति में कीमतों पर आपत्ति जताने वाले डॉ. अरविंद नेरल जैसे सदस्यों की बातों को नजरअंदाज किया गया और आरोपी क्षीरोद्र राउतिया ने समिति को गुमराह कर नियमों का उल्लंघन किया।

इसके अलावा, आपूर्ति किए गए उपकरणों को स्थापित करने या अनुचित आदेशों को रद्द करने जैसे जरूरी कदम भी नहीं उठाए गए। करोड़ों की मशीनें बंद पड़ी रहीं और रिएजेंट्स समय पर उपयोग न हो पाने से एक्सपायर हो गए, जो अधिकारियों और आपूर्तिकर्ता के बीच मिलीभगत को दर्शाता है।

इस मामले में 22 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और चार निजी कंपनियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।