राज्यसभा सांसद, महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्य फूलोदेवी नेताम, न केवल राजनीति में सक्रिय हैं, बल्कि समय मिलने पर खेतों में धान की रोपाई भी करती हैं। फरसगांव की रहने वाली नेताम की पहचान एक निडर और जमीनी नेता के रूप में है। वे उन चंद नेताओं में से हैं, जिन्होंने साल 2013 के झीरम घाटी नक्सली हमले के दौरान अपनी बहादुरी से नक्सलियों को गोलीबारी रोकने के लिए मजबूर कर दिया था।
फूलोदेवी नेताम का मानना है कि जब महिलाएं डर के बिना काम करती हैं, तो वे हर जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभा सकती हैं। वे कहती हैं कि पंचायती राज में मिले आरक्षण ने महिलाओं के लिए राजनीति के द्वार खोले हैं, और अब प्रदेश की महिलाएं सिर्फ घरेलू कार्यों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि शिक्षा, राजनीति, व्यापार और सामाजिक कार्यों में भी कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।
नक्सली हमले में भी नहीं टूटी हिम्मत
झीरम घाटी हमले की बात करें तो इस माओवादी हमले में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता मारे गए थे। इस काफिले में फूलोदेवी नेताम भी शामिल थीं, जिन्हें गोली लगी थी, लेकिन फिर भी उन्होंने साहस दिखाते हुए नक्सलियों से संवाद किया और गोलीबारी बंद कराई। उनकी इसी हिम्मत और निडरता ने उन्हें आज की महिलाओं के लिए प्रेरणा बना दिया है।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्यरत
नेताम का कहना है कि बस्तर और अन्य क्षेत्रों की महिलाएं अब केवल महुआ-इमली बीनने तक सीमित नहीं हैं, वे बाजारों में अपने उत्पाद बेच रही हैं और स्व-सहायता समूहों के ज़रिए आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं। कई महिलाएं अब खुद के उद्योग चला रही हैं और समाज में बदलाव की वाहक बन रही हैं।
गांधी के आदर्शों पर चलने वाली नेता
फूलोदेवी नेताम कहती हैं कि उन्हें परिवार से पूरा समर्थन मिला और वे महात्मा गांधी के उस विचार को मानती हैं जिसमें कहा गया है कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग के साथ खड़े होकर ही असली सेवा की जा सकती है। इसी सोच के साथ उन्होंने बस्तर की कई महिलाओं को सामाजिक कार्यों के साथ ही राजनीति में भी सक्रिय किया है।
उनका स्पष्ट संदेश है: “हालात चाहे जैसे भी हों, अगर आप मजबूत इरादों के साथ डटे रहते हैं, तो रास्ते खुद बन जाते हैं।”