रायपुर। NEET-UG के नतीजे से पहले छत्तीसगढ़ की मेडिकल सीटों को लेकर किए गए विश्लेषण में कई अहम जानकारियां सामने आई हैं। देश में एमबीबीएस की कुल 1,18,148 सीटें हैं, लेकिन इनमें से छत्तीसगढ़ के हिस्से महज 2130 सीटें ही आती हैं, जो कि कुल का सिर्फ 1.8% है। कॉलेजों के लिहाज से भी स्थिति कुछ खास बेहतर नहीं है—देशभर में 780 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें से सिर्फ 15 छत्तीसगढ़ में हैं, यानी कुल का महज 1.92%।

हालांकि बीते 9 वर्षों में राज्य ने मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा खासा विकास किया है। 2016 में जहां प्रदेश में महज 700 एमबीबीएस सीटें थीं, वहीं अब यह संख्या बढ़कर तीन गुना से भी अधिक यानी 2130 तक पहुंच गई है। अगले शैक्षणिक सत्र से पांच नए सरकारी और एक निजी मेडिकल कॉलेज खुलने की संभावना है, जिससे कुल कॉलेजों की संख्या 21 और सीटें बढ़कर 2530 तक पहुंच सकती हैं।

सरकारी बनाम निजी कॉलेजों में फीस का अंतर

छत्तीसगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एक वर्ष की फीस मात्र ₹40,000 है, वहीं निजी कॉलेजों में यही फीस ₹7.41 लाख से लेकर ₹8.01 लाख तक जाती है। एम्स जैसे संस्थानों में यह राशि और भी कम—सिर्फ ₹1289—है। निजी कॉलेजों में ट्यूशन फीस के अलावा अन्य मदों में भी शुल्क लिया जा रहा है, जिसको लेकर फीस रेगुलेटरी कमेटी तक शिकायतें पहुंच चुकी हैं।

हालांकि निजी संस्थानों का तर्क है कि अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में मेडिकल फीस सबसे कम है। नए कॉलेज खुलने से छात्रों को अब दूसरे राज्यों का रुख करने की आवश्यकता कम हुई है।

सीट बंटवारे को लेकर उठे सवाल

प्रदेश में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की सीटों का 82% हिस्सा राज्य कोटे के लिए, 15% ऑल इंडिया कोटे और 3% सेंट्रल पुल के लिए रिजर्व होता है। लेकिन जांच में सामने आया कि छत्तीसगढ़ से देशभर में सबसे ज्यादा सीटें सेंट्रल पुल को दी जा रही हैं, जो नियमों के अनुसार उचित नहीं है। अधिकारियों द्वारा पुरानी परंपराओं के नाम पर सीटें ‘लुटाई’ जा रही हैं, जबकि अन्य बड़े राज्य इससे कम सीटें केंद्र को देते हैं।

निजी कॉलेजों में सीटों का बंटवारा 42.5% राज्य कोटे, 42.5% मैनेजमेंट कोटे और 15% एनआरआई कोटे में होता है।

9 साल में बड़ा बदलाव

2016 में प्रदेश में केवल 5 सरकारी और 1 निजी मेडिकल कॉलेज था। आज सरकारी कॉलेजों की संख्या 10 और निजी कॉलेजों की संख्या 5 है। पहले जो निजी कॉलेज दुर्ग में संचालित था, अब वह अधिग्रहण के बाद सरकारी बन चुका है। सीटों में बढ़ोतरी का सीधा लाभ प्रदेश के उन छात्रों को मिल रहा है, जो NEET जैसी कठिन परीक्षा पास कर डॉक्टर बनने का सपना देखते हैं।