छत्तीसगढ़ में मानसून की आमद और शुरुआती बारिश के बाद किसानों ने खेतों में बुआई का काम शुरू कर दिया है। मगर इस बार खेती की शुरुआत में ही किसानों को खाद की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। धान की बुआई के बाद खेतों में खाद डालने के लिए किसान सहकारी समितियों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन वहां उनकी जरूरत की डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) खाद उपलब्ध नहीं है।

किसानों की मांग पर उन्हें एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम) खाद दी जा रही है, लेकिन कई जगहों पर यह भी उपलब्ध नहीं है। दुर्ग, बालोद, महासमुंद, धमतरी, कांकेर, बिलासपुर, कोरबा और जांजगीर-चांपा जैसे जिलों से खाद की कमी की शिकायतें मिल रही हैं।

अधिकारियों ने मानी DAP की कमी

सहकारी समितियों के अधिकारी भी स्वीकार कर रहे हैं कि डीएपी की आपूर्ति कम है। उन्होंने विकल्प के तौर पर एनपीके देने की बात कही, लेकिन कई समितियों में एनपीके भी खत्म हो चुका है।

महासमुंद जिले में बड़ी जरूरत

महासमुंद जिले में इस खरीफ सीजन में लगभग 1.62 लाख किसान 2.47 लाख हेक्टेयर में धान की खेती कर रहे हैं। इसके लिए कुल 66 हजार टन खाद की जरूरत है, लेकिन अभी तक सिर्फ 15 हजार टन खाद का भंडारण हो पाया है। शेष 51 हजार टन खाद की आपूर्ति अब तक नहीं हुई है।

मंत्री ने दिए थे आवश्यक निर्देश

राज्य के खाद्य मंत्री दयालदास बघेल ने पिछले महीने मंत्रालय में हुई समीक्षा बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि किसानों को समय पर खाद उपलब्ध कराई जाए और किसी भी समिति में खाद की कमी न हो। इसके बावजूद जमीन पर स्थिति बदहाल बनी हुई है।

महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर किसान

खाद की कमी से किसान परेशान हैं। उनका कहना है कि डीएपी की सबसे अधिक जरूरत होती है, लेकिन समय पर खाद न मिलने से फसल को नुकसान हो सकता है। यदि वे बाजार से खाद खरीदते हैं, तो उसे सरकारी मूल्य से 400 से 500 रुपए अधिक चुकाने पड़ते हैं।