रायपुर। हाउसिंग बोर्ड, आरडीए और एनआरडीए की कई पुरानी आवासीय परियोजनाएं अब भी फ्री होल्ड की प्रक्रिया से दूर हैं। कारण यह है कि इन परियोजनाओं में जिन जमीनों पर मकान बने हैं, वे आज भी राजस्व रिकॉर्ड में कृषि या सरकारी जमीन के रूप में दर्ज हैं। यही तकनीकी बाधा इन मकानों को फ्री होल्ड में बदलने में सबसे बड़ा अड़चन बनी हुई है।
फाइलों में उलझा मामला, आवेदक चक्कर काट रहे
राज्यभर में हजारों मकान मालिक फ्री होल्ड के लिए आवेदन दे चुके हैं, लेकिन प्रशासनिक प्रक्रिया में देरी और भूमि प्रयोजन (लैंड यूज) के अधूरे बदलाव के कारण लोगों को फ्री होल्ड अधिकार नहीं मिल पा रहा है। यह मामला विशेष रूप से रायपुर के टाटीबंध, हीरापुर जैसे इलाकों में अधिक गंभीर है, जो हाउसिंग बोर्ड के डिवीजन-1 में आते हैं। यहां 15-20 साल पहले कॉलोनियां बसाई गई थीं, पर आज भी भूमि का डायवर्सन नहीं हुआ है।
डायवर्सन न होने से अटकी प्रक्रिया
हाउसिंग बोर्ड और अन्य निकायों ने समय पर राजस्व विभाग से भूमि का उपयोग आवासीय करने की अनुमति (डायवर्सन) नहीं ली, जिससे अब तकनीकी दिक्कतें सामने आ रही हैं। जमीन के उद्देश्य में बदलाव न होने के कारण इन मकानों को मालिकाना हक यानी फ्री होल्ड नहीं दिया जा सकता।
प्रदेशभर में 3000 से ज्यादा प्रभावित
रायपुर ही नहीं, पूरे छत्तीसगढ़ में इस समस्या से लोग जूझ रहे हैं। अनुमान है कि राज्यभर में 3,000 से अधिक लोग इस तकनीकी पेच में फंसे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें उनके मकानों का पूर्ण मालिकाना अधिकार मिले, लेकिन विभागीय प्रक्रियाएं बाधा बनी हुई हैं।
समाधान की कोशिशें जारी
रायपुर के अपर कलेक्टर कीर्तिमान सिंह राठौर ने बताया कि कई कॉलोनियों की जमीन का प्रयोजन आज तक नहीं बदला गया है, जिससे फ्री होल्ड में दिक्कत हो रही है। उन्होंने कहा कि हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों से बातचीत की गई है और जल्द ही इस समस्या का समाधान कर भूमि प्रयोजन को राजस्व रिकॉर्ड में बदला जाएगा।