प्रेस क्लब में आयोजित छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘पुरखा के सुरता में’ के दौरान पद्मश्री अभिनेता अनुज शर्मा ने अपनी फिल्मी यात्रा से जुड़ी एक भावुक याद साझा की। जनकवि लक्ष्मण मस्तूरिहा की स्मृति में आयोजित इस आयोजन में अनुज ने बताया कि उन्हें जब पद्मश्री सम्मान मिला, तो उन्होंने सबसे पहले तीन महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों को फोन किया — जनकवि लक्ष्मण मस्तूरिहा, समाजसेवी मनु नायक और प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सतीश जैन।
अनुज ने कहा, “अगर सतीश जैन मुझे फिल्मों में मौका नहीं देते, तो शायद मैं कभी अभिनय की दुनिया में कदम ही नहीं रख पाता।” उन्होंने यह बात पूरी विनम्रता और कृतज्ञता के साथ कही, जिससे साफ होता है कि सतीश जैन का उनके करियर में बड़ा योगदान रहा है।
सतीश जैन और मस्तूरिहा की रचना यात्रा भी आई सामने
कार्यक्रम के दौरान निर्देशक सतीश जैन ने भी अपनी छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘मोर छैंया भुइयां’ के निर्माण से जुड़ी एक दिलचस्प घटना सुनाई। उन्होंने बताया कि जब फिल्म बन रही थी, तब उनके पिताजी ने कहा था कि “लक्ष्मण मस्तूरिहा से गीत लिखवाए बिना छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाना संभव नहीं।”
पहली मुलाकात में जब सतीश जैन मस्तूरिहा से मिले तो उन्होंने फिल्मी लोगों पर भरोसा न होने की बात कहकर उन्हें लौटा दिया। लेकिन कहानी सुनाने के बाद दो दिन के भीतर मस्तूरिहा ने न केवल टाइटल सॉन्ग लिखा, बल्कि ‘देख के तोला’, ‘झूठ के रद्द’, और ‘जान ले पहचान ले’ जैसे कालजयी गीत भी रचे। जैन ने कहा कि मस्तूरिहा की विशेषता यह थी कि वे गीतों में रिदम और मीटर का भी गहराई से ध्यान रखते थे।
इस आयोजन ने छत्तीसगढ़ी सिनेमा और साहित्य जगत के उन अनछुए पहलुओं को सामने लाया जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाले हैं।